हमारे पापा ने जब कुछ दिनों पहले राजतंत्र पर एक पोस्ट लिखी थी कि हमारी 1000 पोस्ट पूरी हो गई तभी मैंने पापा से पूछा था कि आपकी एक हजार पोस्ट कैसे पूरी हो गई, तो उन्होंने राजतंत्र और खेलगढ़ की पोस्ट को जोड़कर बताया था कि कैसे 1000 पोस्ट पूरी हुई है। ऐसे में हमने पापा से कहा कि पापा मेरे ब्लाग में भी तो आप ही लिखते हैं फिर उसमें लिखी गई पोस्ट भी तो आपकी हुई न। इन पोस्टों को अगर मिला दिया जाए तो आपकी 1000 पोस्ट तो पिछले माह ही पूरी हो गई थी। लेकिन पापा यह बात मानने को तैयार ही नहीं हैं। वे कहते हैं कि बेटा तुम्हारे ब्लाग में जो लिखा गया है वह तुम्हारे कहने पर लिखा गया है, भले उसे हमने लिखा है, लेकिन भावना तो तुम्हारी है। ऐसे में वह सब तुम्हारा है।
मैंने पापा से कहा कि चलो इस मामले को हम ब्लाग जगत की अदालत में ले चलते हैं और पूछते हैं कि मेरे ब्लाग में लिखी गई पोस्ट आपकी मानी जाएगी या नहीं।
अब ब्लाग जगत की अदालत के हमारे ब्लागर जज ही फैसला करें कि कौन ठीक कहता है मैं या मेरे पापा।
Why I want to be house captain
6 years ago